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नवरात्र में तीन स्वार्थसिद्धि योग बहुत ही शुभ, गुरु व शनि रहेंगे स्वगृही

नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू हो रही है। सुबह - सुबह 8 बजकर 16 मिनट से कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त बन रहा है, जो 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। पूरे दिन में कलश स्थापना के कई योग बन रहे हैं। इसमें सुबह 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में भी बड़ी संख्या में लोग कलश स्थापना करके शक्ति की अराधना शुरू कर सकते हैं। इसी दिन दोपहर 2 बजकर 24 मिनट से 03 बजकर 59 मिनट तक और शाम 7 बजकर 13 मिनट से 9 बजकर 12 मिनट तक स्थिर लग्न है। इसमें भी कलश स्थापना की जा सकती है। पहले दिन घट स्थापना के साथ मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 



 


बन रहे हैं तीन स्वार्थ सिद्धि योग 


इस नवरात्रि के दौरान तीन स्वार्थ सिद्धि योग 18 अक्टूबर, 19 अक्टूबर और 23 अक्टूबर को बन रहा है। वहीं, एक त्रिपुष्कर योग 18 अक्टूबर को बन रहा है।  इस नवरात्रि के दौरान गुरु व शनि स्वगृही रहेंगे जो बेहद ही शुभ फलदायी है। इस नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के साथ-साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करना लाभकर होगा। इस दौरान झूठ, फरेब व व्यसन से बचना चाहिए। कन्या पूजन के साथ-साथ नौ वर्ष से नीचे की कन्याओं को उपहार भी देना चाहिए। 


चार बार होता है त्योहार 


साल में चार बार नवरात्रि का त्योहार आता है। जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि आती है। नवरात्रि के नौ दिन में मां के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। 


नवमी और दशमी एक दिन 


इस बार नवमी और दशमी एक ही दिन मनायी जाएगी। 25 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 14 मिनट तक नवमी मनायी जाएगी।11 बजकर 14 मिनट के बाद हवन के साथ विजयादशमी मनायी जाएगी। इसके बाद शाम को दशहरा मनाया जाएगा। 


घोड़े पर हो रहा आगमन 


इस बार मां का आगमन घोड़े पर हो रहा है। शास्त्रों के अनुसार मां का घोड़े पर आगमन पड़ोसी देशों के साथ कटु संबंध राजनीतिक उथल-पुथल, रोग व शोक देता है। फिर मां भैंस पर विदा हो रही है। इसे भी शुभ नहीं माना जाता है। 


ऐसे करें पाठ 


बड़ी संख्या में लोग दुर्गाशप्तसती का पाठ स्वंय करते हैं। दुर्गा पाठ करने का विधान है।  खुद से पाठ करने वाले श्रद्धालुओं को पाठ के पहले माता का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद अष्टोत्तरशतनाम(दुर्गा के 108 नाम) का जाप करना चाहिए। इसके बाद विनियोग करना चाहिए। बाद में श्रापमुक्ति मंत्र का पाठ होना चाहिए। इसके बाद कई तरह के विध्नयास करने के बाद माता का ध्यान करते हुए कवच का पाठ करने का विधान है। कवच पाठ के बाद अर्गला, कीलक आदि का पाठ करके सप्तशती का पाठ करना चाहिए। 


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