गुप्त नवरात्रि का है विशेष महत्त्व जाने ,25 जनवरी से है आरम्भ
ये हैं नौ दिन
- 25 जनवरी शनिवार - प्रतिपदा- घट स्थापना एवं मां शैलपुत्री पूजन
- 26 जनवरी रविवार - द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी पूजन
- 27 जनवरी सोमवार - तृतीया अहोरात्र, रवियोग
- 28 जनवरी मंगलवार - तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा, गौरी तृतीया
- 29 जनवरी बुधवार - मां कुष्मांडा पूजा, रवियोग
- 30 जनवरी गुरुवार - मां स्कंदमाता पूजा, बसंत पंचमी, सरस्वती पूजन, बुध उदय पश्चिम में
- 31 जनवरी शुक्रवार - मां कात्यायनी पूजा, शनि उदय, अमृत सिद्धि योग
- 1 फरवरी शनिवार - मां कालरात्रि पूजा, नर्मदा जयंती, रथ आरोग्य सप्तमी
- 2 फरवरी रविवार - मां महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, भीष्माष्टमी 3 फरवरी सोमवार - मां सिद्धिदात्री पूजा, नवरात्रि पूर्णाहुति
वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं।
दो प्रकट रूप में और दो गुप्त रूप में। प्रकट रूप में नवरात्रियां चैत्र और शारदीय नवरात्रि कहलाती हैं और गुप्त नवरात्रियां माघ और आषाढ़ माह में आती है। गुप्त नवरात्रियों का महत्व चैत्र और शारदीय नवरात्रियों से भी अधिक होता है, क्योंकि इनमें देवी अपने पूर्ण स्वरूप में विद्यमान रहती हैं जो प्रकट रूप में नहीं होता है। गुप्त नवरात्रियों में देवी को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रोक्त और तांत्रोक्त दोनों तरह से पूजा और उपाय किए जाते हैं। लेकिन गुप्त नवरात्रि में तांत्रोक्त उपाय अधिक किए जाते हैं। इसमें सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि साधकों को पूर्ण संयम, नियम और शुद्धता से देवी आराधना करना होती है।
सर्वार्थसिद्धि योग
वर्ष 2020 की प्रथम गुप्त नवरात्रि माघ शुक्ल प्रतिपदा 25 जनवरी, शनिवार से प्रारंभ हो रही है, जो माघ शुक्ल नवमी 3 फरवरी सोमवार को पूर्ण होगी। गुप्त नवरात्रि आमतौर पर उत्तरी भारत जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और इनके आसपास के प्रदेशों में बड़े पैमाने पर मानी जाती है। गुप्त नवरात्रि में भी नौ दिनों तक क्रमानुसार देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि प्रारंभ होने के दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है, जो शुभकारी योग है।
गृहस्थों के लिए विशेष
गृहस्थ साधक जो सांसारिक वस्तुएं, भोग-विलास के साधन, सुख-समृद्धि और निरोगी जीवन पाना चाहते हैं उन्हें इन नौ दिनों में दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए। यदि इतना समय न हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा का प्रतिदिन पाठ करें। देवी को प्रसन्न करने के लिए और साधना की पूर्णता के लिए नौ दिनों में लोभ, क्रोध, मोह, काम-वासना से दूर रहते हुए केवल देवी का ध्यान करना चाहिए। कन्याओं को भोजन कराएं, उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र भेंट करें।
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