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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महावत को अपने हाथी से मिलने की इजाजत नहीं दी है।


  • महावत ने बंदी प्रत्‍यक्षीकरण याचिका दायार कर कोर्ट से हाथी को पेश करने की अपील की थी।

  • कोर्ट ने याचिका खार‌िज कर दी है।


जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता धींगरा सहगल की खंडपीठ ने माना है कि जंगल हाथी का प्राकृतिक निवास है। उसे पर्याप्त पानी, आवास के के साथ चलने-फिरने और चरने के लिए बड़े इलाके की आवश्यकता होती है। इसलिए, जानवरों के अधिकारों का ध्यान रखने के लिए अदालत का कर्तव्य है कि वह पैरेन्स पैट्रिए के सिद्धांत के तहत काम करे। महावत ने कोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याच‌िका में मांग की थी कि उसके हाथी लक्ष्मी को हाथी पुनर्वास केंद्र की कथित अवैध हिरासत से र‌िहा किया जाए। महावत ने यह भी मांग की थी कि हाथी-लक्ष्मी को वापस दिल्‍ली लाया जाए और उसे हाथी से मिलने की इजाजत दी जाए और उक्त प्र‌‌क्रिया का खर्च प्रतिवादी वहन करे।


फोटो साभार


कोर्ट ने यह मानने के लिए कि चूंकि जानवर खुद को व्यक्त करने में असमर्थ है, इसलिए मौजूदा मामले में पैरेन्स पैट्र‌िए का सिद्धांत लागू होगा, एनिमल वेलफेयर बोर्ड बनाम ए नागराजा व अन्य (2014)7 एससीसी 547 के मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया।


कोर्ट ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि यह स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है कि महावत हाथी का मालिक है और / या हाथी- लक्ष्मी महावत के बिना नहीं रह सकता।


कोर्ट ने कहा कि हाथी और महावत के कथित अधिकारों के बीच संघर्ष की स्थिति में, हाथी के अधिकारों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसलिए, अदालत की राय के अनुसार, हाथी पुनर्वास केंद्र एक महावत की तुलना में हाथी-लक्ष्मी की जरूरतों का ख्याल रखने के लिए बेहतर है।


इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि हाथी-लक्ष्मी को स्थानांतरित करने दरमियान हुई क्रूरता के आरोपों को हेबियस कॉर्पस की रिट में तय नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अधिकार दिया कि वह हाथी से मिलने के लिए हाथी पुनर्वास केंद्र के समक्ष अपील करे। 


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