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17 भाजपा अध्यक्ष के दावेदारो की किस्मत दांव पर

उरई। सत्ता का मजा लेने के लिए भाजपा जिलाध्यक्ष पद के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक दावेंदारो ने अपनी किस्मत दांव पर लगाई हुई है और यह सब पैनल के ऊपर निर्भर करता है किसके नाम लखनऊ तक पहुंचेगें, कौन कितना तेज दौड़ रहा है और वों अपना कितना जोर लगा सकता है इस उधेड़पन में पूरी चुनाव प्रक्रिया उलझकर रह गई है। 



- किसको बंधेगा सेहरा, कौन खायेंगा गोता यह सब पैनल पर करेंगा निर्भर 
- पुराने दिग्गजो ने भी ठोकी ताल, लेना चाहते है सत्ता का मजा 

आज वंडर प्ले स्कूल में भाजपा जिलाध्यक्षी का चुनाव पार्टी के नियमानुसार सम्पन्न हुआ। जिसमें चुनाव अधिकारी साकेन्द्र प्रताप वर्मा, सह चुनाव अधिकारी महेन्द्र पाल सिंह राजपूत की देखरेख में आयोजित हुआ। जिसमें मनोज कुमार, सोन पाल शर्मा, नागेन्द्र गुप्ता, रामलखन औदिच्य, हरेन्द्र विक्रम सिंह, ब्रजभूषण कुशवाहा, दिलीप दुबें, रामेन्द्र सिंह, देवेन्द्र सिंह यादव, कैलाश स्वरूप बाजपेई, रामजी राजपूत, उर्विजा दीक्षित, वीरेन्द्र सिंह निरंजन, नीरज श्रीवास्तव, भगवतीशरण शुक्ला, संजीव उपाध्याय, हरीकिशोर गुप्ता जो कि चुनाव मैदान में खड़े थे।


संभवत: भाजपा में यह पहली बार नियम बनाया कि दो समर्थक एवं प्रस्ताव जिसके पास हो वो चुनाव में खड़ा हो सकता है। इन सभी ने नियम का पालन किया और जानकारी के मुताबिक यह सब नाम क्षेत्रीय अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह कानपुर के यहां भेजे जायेंगें। वहां से पैनल की बारीकिता के आधार पर पांच से छ: नाम लखनऊ भेजे जायेंगें ताकि उनके ऊपर विचार किया जा सकें। चूंकि इस समय भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह है और यहां के स्थानीय लोग उनसे जुडे हुए है और काम कर चुकें है इसलिए सभी लोग अपना-अपना सीना फुला रहें है और सब उनको अपना खास बता रहें है ऐसी परिस्थितियों में प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेंदारी एक अहम भूमिका का निर्वाह्र करेंगी।


चूंकि पूर्व में ब्रजभूषण सिंह, दिलीप दुबें, नागेन्द्र गुप्ता जो जिलाध्यक्ष रह चुकें है अब इन्होने पुन: अपनी किस्मत आजमाई है। उर्विजा दीक्षित, भगवतीशरण शुक्ला यह काफी समय से पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता है। नागेन्द्र गुप्ता जो कि मौजूदा समय में जिलाध्यक्ष की ताजपोशी कर रहें है इसलिए जिलाध्यक्षी को दुबारा बनने के लिए आतुर दिखाई पड़ रहें है। आखिरकार जिलाध्यक्ष में ऐसी क्या खासियत है कि जिसकी वजह से इस पद को पाने के लिए लोगो में होड़ मचीं हुई है। पूर्व में दो गुट हमेशा पार्टी में रहें है और जिलाध्यक्ष भी उसी पार्टी से बनता रहा है जिसका पलड़ा हमेशा भारी रहा है।


14 वर्ष वनवास काटकर प्रदेश में भाजपा सरकार बनीं हुई है और जिसका कार्यकाल अभी लगभग तीन वर्ष बांकी है और ऐसे में भाजपा जिलाध्यक्ष का पद एक मायने रखता है। सत्ता की हनक में उसकी भी हनक बरकरार रहती है इसलिए जिलाध्यक्षी पाने के लिए उम्मीदवार अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ेगें। हालांकि इस बार ऐसे व्यक्ति के हाथ में जिलाध्यक्षी आ सकतीं है जो पूर्व में भी कमान संभाल चुका है। चुनाव है पार्टी का अपना एजेंडा है, किस तरह से वों जिलाध्यक्षी का चुनाव करेंगें यह पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सहित इनके अन्य कार्यकारणी में विचारोपरांत स्पष्ट हो सकता है परन्तु इस चुनाव को लेकर जो तरह-तरह की चर्चायेें है वों निश्चित रूप से शहर में चर्चा का विषय बना हुई है।


अध्यक्षी पद को लेकर जो ताले ठोकी गई है उससे यह साबित हो रहा है कि पद को लेकर घमासान जारी रहेंगा। परन्तु जो भी चेहरे मौजूदा समय में मैदान में उतरें है उनकी धड़कने तब तक बरकरार रहेंगी जब तक हाईकमान द्वारा किसी तरह का कोई भी इशारा प्राप्त नहीं हो जाता है। इतना निश्चित है कि अब जिलाध्यक्ष का पद पाने के लिए जोर आजमाईश मेहनत से करना पड़ेगी ताकि आया हुआ मौका हाथ से न जाना पायें।


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