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पर्यटन की दृस्टि से कानपूर एक शानदार जगह,जाने इसके विषय में

कानपुर - 


आबादी की दृस्टि से राज्य का सबसे बड़ा शहर कानपुर ऐतिहासिक और सामरिक दृस्टि से महत्वपूर्ण  है। आजादी में योगदान हो या व्यापारिक दृश्टिकोण से भी इसकी अपनी पहचान है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर उन प्रमुख केंद्रों में से एक था जहां से भारत ने अपनी औद्योगिक क्रांति की शुरूआत की। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि इस शहर की स्थापना 10 वीं और 13 वीं सदी के बीच चंदेल राजवंश के शासकों ने की थी।इसके दर्शनीय स्थल की संछिप्त जानकारी .......


1 -बिठूर:



हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के पूर्व यहं तपस्या की थी। उसी को स्मरण दिलाता यहाँ का ब्रह्मावर्त घाट है। ये भी वर्णन मिलता है कि यहीं पर ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था।लव कुश का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। बिठूर किसी ज़माने में सत्ता का केंद्र हुआ करता था। ये नानाराव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है। उसी दौर में कानपुर से अपनी जान बचाकर भाग रहे अंग्रेज़ों को सतीचौरा घाट पर मौत के घाट उतार दिया गया। बाद में उसके बदले में अंग्रेज़ों ने गाँव के गाँव तबाह कर दिए औऱ एक एक पेड़ से लटका कर बीस-बीस लोगों को फाँसी दे दी गई।





वाल्मीकि आश्रम- ब्रह्मावर्त घाट- पाथर घाट- ध्रुव टीला- देखने योग्य स्थान है। 


2 -बूढ़ा बरगद: 135 क्रांतिकारियों को इस बरगद पर दी गई थी फांसी

इतिहासकारों के मुताबिक़ नानाराव पार्क में हुए बूढ़े बरगद का काण्ड बीबीघर और सती चौरा घाट से जुड़ा हुआ था।यह बरगद का पेड़ शहर के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। हालांकि इस पेड़ का प्राकृतिक अस्तित्व मिट चुका है लेकिन इसके साक्ष्य आज भी नाना राव पार्क में देखे जा सकते हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने कानपुर में करीब 135 क्रांतिकारियों को इस पार्क में मौजूद बूढ़े बरगद की शाखाओं पर ज़िंदा लटका दिया था।



3 - एलन फारेस्ट जू  (Allen Forest Zoo):


1971 में खुला यह चिड़ियाघर भारत के सर्वोत्तम चिड़ियाघरों में एक है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर है। यह कानपुर शहर में स्थित है। यहाँ पर लगभग 1250 जीव-जंतु है। कुछ समय पिकनिट के तौर पर बिताने और जीव-जंतुओं को देखने के लिए यह चिड़ियाघर एक बेहतरीन जगह है।यहाँ का पहला जानवर उद्बीलाव था जो की चम्बल घाटी से आया था। 



4-द्वारिकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Mandir):


यह कानपुर में कमला टावर के पास स्थित है। हिंदु कैलेण्डर के अनुसार श्रावण का त्यौहार जुलाई और अगस्त में आता है। उत्तर भारत के हिंदु इस समय को वर्ष का सबसे शुभ समय मानते हैं।  शाम को मंदिर में 'आरती'  का आनंद उठाया जा सकता है|


5 -जैन ग्लास मंदिर (Jain Glass Temple):


जैन कांच मंदिर का निर्माण जैन समुदाय द्वारा उनके धर्म के 24 तीर्थंकरों की स्मृति में करवाया गया। इस मंदिर में भगवान् महावीर और तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ एक विशाल छतरी के नीचे संगमरमर के मंच पर खड़ी हैं।  यह मंदिर कमला टावर के पास माहेश्वरी महल में स्थित है।मंदिर की सम्पूर्ण संरचना कांच और मीनाकारी से बनी हुई है। इसे पारंपरिक वास्तुकला शैली में बनाया गया है। मंदिर की ज़मीन संगमरमर की बनी हुई है जबकि मंदिर की दीवारों और छतों को कलात्मक ढंग से कटे हुए कांच से सजाया गया है।




6-भीतरगाँव मंदिर:

भीतर गाँव, उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। यहाँ गुप्तकालीन एक मंदिर के अवशेष उपलब्ध है जो गुप्तकालीन वास्तुकला के सुंदर नमूनों में से एक है। ईटों का बना यह मंदिर अपनी सुरक्षित तथा उत्तम साँचे में ढली ईटों के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसकी एक-एक ईट सुंदर एवं आर्कषक आलेखनों से खचित थी।68.25 ऊंची यह संरचना टेराकोटा और 18 इंच लम्बी, 9 इंच चौड़ी और 3 इंच मोटी ईंटों से बनी है। यह 36 फीट लंबे और 47 फीट चौड़े मंच पर बना है। मंदिर की दीवारों की मोटाई 8 फीट है। इसमें एक गुम्बदाकार मेहराब है जिसका उपयोग भारत में पहली बार किया गया। पूरा ढांचा उस समय की वास्तुकला का प्रमाण है। 15 फीट लम्बा और 15 फीट चौड़ा यह गर्भगृह दो मंजिला है और यह देवी सीता के अपहरण से अधिक नर और नारायण की पश्चाताप की हिंदु अवधारणा को प्रस्तुत करता है। 




कानपुर घाटमपुर तहसील क्षेत्र में कसबा भीतरगांव में सातवीं सदी में बनवाया गया गुप्तकालीन मंदिर इतिहास में दर्ज है। ईंटों से निर्मित इस मंदिर की खोज का श्रेय अंग्रेज पर्यटक कानिंघम को दिया जाता है। मंदिर के गर्भग्रह में कोई मूर्ति नहीं है। जबकि, ईंटों से निर्मित दीवारों पर पशु-पक्षियों और मनुष्यों की मैथुनरत प्रतिमाएं (खजुराहो) की तर्ज पर खंडित अवस्था में हैं। 


7-बेहटा मंदिर 


भीतर गाँव मंदिर के पास एक और प्राचीन मंदिर परिसर है। यह बेहटा बुजर्ग गांव में स्थित है और भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। मंदिर विशिष्ट स्तूप (टीले) में बनाया गया है और भगवान जगन्नाथ की प्राचीन मूर्तियों को रखता है। स्थानीय लोगों ने देखा है कि इस मंदिर परिसर की छत बारिश के कुछ दिनों पहले से टपकने लगती है और यह इस क्षेत्र के किसानों के बीच एक विश्वसनीय बारिश के पूर्वानुमान के रूप में लोकप्रिय है। भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों के साथ, मंदिर में एक सूर्य देवता की छवि और एक चट्टान पर नक्काशीदार भगवान विष्णु की मूर्ति भी है।



 


 


 






 


 


 


 



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