योगी बाबा की गौशालाएं बनी सचिव, प्रधान व अधिकारियों की कमाई का जरिया
- गौशाला निर्माण में एक ही फर्म पर प्रशासन मेहरबान
- मनरेगा कोआर्डिनेटर पर उठ रहें है सवाल
- आधा सैकडा से अधिक गौशालायें पूर्ण हो चुकीं, बाकीं में काम अटका पडा
उरई। किसानो को राहत देने के लिए स्थाई व अस्थाई गौशाला निर्माण में शासन और प्रशासन द्वारा पारदर्शिता रखने के कडे निर्देश जारी किए गए है इसके बाबजूद भी कुछ फर्मो को इसका काम दे दिया गया और जो कि अब करोडो में खेल रहा है। वहीं शक की सुईयां मनरेगा के कोआर्डिनेटर की ओर उठी हुई है और जिसका फायदा कोआर्डिनेटर उठाने से चूंक नही रहें है।
गांव विकास के पहली पंक्ति में खडे हो और प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा जो गौशाला निर्माण के लिए धनराशि आवंटित की जा रहीं है उसका संदेश गलत जा रहा है, सामग्री आपूर्ति के लिए उच्चाधिकारियेां द्वारा फर्मो पर मेहरबानी दिखाई गई, एक ही फर्म से कई ब्लाकों में ईट, गिटटी और मौरम से लेकर अन्य सामग्री की आपूर्ति की जा रहीं है और यह फर्म एक ही परिवार की है जिसमें गडबडी की आशंका साफ नजर आ रहीं है। जनपद के सभी ब्लाकों के अंतर्गत अन्ना मवेशियों से किसानो को राहत देने के लिए सरकार की मंशा के मुताबिक इनका निर्माण कराया जाना है इनहें चारागाह, गौवंश आश्रय स्थल नाम दिया गया है।
प्रशासन की ओर से लक्ष्य तैयार कर गांव की सरकार को मनरेगा के तहत निर्माण कराए जाने के आदेश जारी किए थे इसके बाद कार्य में पैसा की कमी नहीं रहे इसके लिए राज्य वित्त से बजट दिए जाने का प्रावधान किया गया। जिसमें 76 गौशालायें पूर्ण हो चुकीं है जिसमें महेवा में 19 गौशालयें चयनित हुई 15 बन गई, डकोर में 44 में से 11, नदीगांव में 26 मे से 7 बन गई, जालौन में 21 में से 6, माधौगढ में 18 में से 6, कदौरा में 22 में से 10 बन गई, कुठौंद में 16 में से 4, रामपुरा में 17 में से 5 इनमें से अधिकांश गौशाला में डकोर क्षेत्र के पूर्व प्रधान को ग्राम पंचायत की अच्छी समझ है यही वजह है कि एक ही फर्म से ग्राम पंचायत निर्माण आपूर्ति का काम शुरू किया। कुछ दिनो बाद जांच मामला नजर न आयें और काम भी ज्यादा मिल सकें। अलग-अलग फर्मो से कागज तैयार करा लिए गए ताकि सुरक्षित रह सकें। कुल मिलाकर 76 गौशालये पूर्ण हो चुकीं है और 4 पूर्ण होने की स्थिति में है। आखिरकार एक ही फर्म पर प्रशासन मेहरबान कैसे हुआ। वहीं डकोर, जालोन समेत अन्य ब्लाकों में भी इसके द्वारा आपूर्ति की गई है।
कोच ब्लाक में यू तो कई फर्मो को काम मिला परंतु यह सब चर्चा का विषय है इसके लिए प्रशासन द्वारा जो मानक रखें गए या फिर गौशाला के लिए टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई या फिर नहीं। यह एक जांच का विषय है। चूंकि ग्राम पंचायतो में सामग्री आपूर्ति के लिए टेंडर व्यवस्था का प्रावधान लागू कर दिया गया है और यह प्रावधान इसलिए किया गया कि अधिक से अधिक कामों में पारदर्शिता दिखाई जायें वहीं गौशाला के लिए किस नंबर की ईट और मसाले का मिश्रण आदि के जो मानक दिए गए है वों भी सही है या फिर नहीं। कहा जाये तो गलत नहीं होगा
योगी बाबा की गौशाला प्रधान व सचिव सहित प्रशासन की कमाई का जरिया बन गए है। आज भी छुटट जानवर सडक पर नजर आतें है, करोडो रूपए गौशाला के नाम पर फूंक दिए गए परन्तु कहीं पर भी इसका लाभ आम किसानो को नहीं मिल पा रहा है। फोरलेन से लेकर ग्रामीण व शहरी क्षेत्र की सडको पर अन्ना जानवर घूम रहें है वहीं डकोर ब्लाक में सबसे ज्यादा गौशाला के नाम पर व्यय हुआ है इस ब्लाक में 44 गौशाला बनाए जाने का लक्ष्य है। इसमें 11 बनकर तैयार हो चुकीं है और अन्य पर काम चल रहा है। अब तक 67 लाख 58 हजार रूपए से अधिक व्यय दिखाया गया है।
वहीं मुख्य विकास अधिकारी प्रशांत कुमार से जब इस मामलें में वार्ता की गई तो उन्होने बताया कि अगर इस तरह की गडबडी की गई और फर्म को अधीनस्थ अधिकारियों को मौका दिया गया तो इसकी जांच कराई जायेंगी और मानक से हटकर काम किया गया और टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाई गई तो जांच के उपरांत जो भी दोषी होगा उसके ऊपर कार्यवाही अमल में लाई जायेंगी।
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