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लिव इन रिलेशन की उलझन में समाज

 बीते सालों पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि लिव इन रिलेशनशिप में न केवल हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है बल्कि लिव इन में रहने वालों के खिलाफ दुष्कर्म के मामले में भी कई गुना बढ़ोतरी हुई हैं। यह चिंता का विषय है। दरअसल लिव इन रिलेशनशिप के सवाल पर बरसों से जारी बहस का कोई सार्थक हल नहीं निकल सका है। समाज, संस्कृति और धर्म के ठेकेदार भले इस सवाल पर बवाल मचाएं लेकिन सच्चाई यह है कि कानून भले इसकी वैधता न स्वीकारे किन्तु आज के दौर में लिव इन रिलेशनशिप के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही इनमें हिंसा के मामलों में भी तेजी आई है। अकेले राजधानी दिल्ली में पिछले चार सालों में लिव इन में हिंसा के मामलों में 12 गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। उक्त घटनाओं के मददेनजर ही दिल्ली हाईकोर्ट ने जोड़ों को खासकर लड़कियों को सुझाव दिया है कि वह किसी भी रिश्ते-चाहे शादी का हो या फिर लिव-इन में जाने से पहले सोच-समझकर कदम उठायें। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद से कहना पड़ा कि वह घरेलू हिंसा अधिनियम में ऐसे बदलाव करे कि जिससे लिव इन में बंधी महिलाओं और उनके बच्चों को भी उसके तहत सुरक्षा मिल सके।



लिव इन रिलेशनशिप के फायदे



  • लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली जोड़ियों में धोखा, बेवफाई और व्यभिचार की आशंका कम होती है।

  •  इस रिश्ते में रहते-रहते आप विवाह के बंधन में भी बंध सकते हैं।

  • दोनों पार्टनर अपनी जिम्मेदारियां बिना किसी दबाव के निभाते

  •  इस संबंध में समाज और कानून दोनों का नियंत्रण भी है।


लिव इन रिलेशनशिप के नुकसान



  • बंधन में न बंधने की आजादी तो होती है, पर लाइफ में पूरी तरह से एन्जॉय नहीं कर पाते, क्योंकि अविश्वास की भावना पनपने का डर बना रहता है। दोनों में से किसी एक के बहकने का डर अधिक बना रहता है साथ ही कमिटमेंट तोड़ने का भी डर रहता है।

  • कहीं आपका पार्टनर आपको छोड़ न दे इस तरह का डर मन में हमेशा बना रहता है, जिससे तनाव की स्थितियां भी उत्पन्न हो जाती है।

  • एक दूसरे के वर्क स्टाइल या कल्चर को ना समझ पाने के कारण भी दिक्कतें आने लगती है।

  • आप शुरूआत में प्यार और भावनात्मक रूप से तो जुड़ते है लेकिन धीरे-धीरे उसमें कमी आने लगती है जिससे बोरियत होने लगती है।


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना न कोई अपराध है और न ही पाप। भले ही इस तरह के संबंध देश में सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हों, उसने संसद से इस तरह के रिश्तों में रह रही महिलाओं और उनसे जन्में बच्चों की रक्षा के लिए कानून बनाये जाने के लिए कहा है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप यानी बिना विवाह के लड़के-लड़की के साथ रहने को विनियमित करने के लिए कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं है। रिश्ते खत्म होने के बाद ये संबंध न तो विवाह की प्रकृति के होते हैं और न ही कानून में इन्हें मान्यता प्राप्त है। उसने लिव इन रिलेशनशिप को वैवाहिक संबंधों की प्रकृति के दायरे में लाने के लिए दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि इन मुद्दों पर संसद को विचार करना है। जब मौजूदा कानून में लिव इन रिलेशनशिप की कोई वैधता नहीं है, तो उसके टूटने को शादी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है। इसलिए इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट कानून बनाया जाना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मानकों का सुझाव दिया है जिनके पूरा किये जाने पर इस रिश्ते को कानूनन शादी की तरह मान्यता मिल सके। यदि इस रिश्ते को कानूनी मान्यता मिलती है तो इससे उनके बच्चों के कानूनी अधिकार भी तय किये जा सकते हैं।


लिव इन रिलेशनशिप के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें



  • आपको अपने पार्टनर के साथ एग्रीमेंट करना चाहिए।

  • आपको साथ निभाने के लिए ट्रेनिंग लेनी चाहिए।

  • आपका पार्टनर यदि आपकी मजबूरी या आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे रोकने की आपमें क्षमता व हिम्मत होनी चाहिए।

  • अपने पार्टनर पर पूरी तरह से भरोसा होना चाहिए व इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको उस निर्णय को जीवन भर निभाना पड़ेगा।


वह बात दीगर है कि इस संबंध को आजकल शादी का विकल्प कहा जा रहा है। समाज इसे भले नकारे लेकिन इसके कुछ फायदे भी हैं। इसमें न कोई बंधन, न कोई दस्तावेज होता है, हां वैवाहिक जीवन की तरह स्त्री-पुरुष साथ रहते जरूर हैं और घर के सभी खर्च बराबर उठाते हैं। इसे जब चाहे बिना किसी कानूनी अड़चन, झंझट, भावनात्मक लगाव व आर्थिक परेशानियों के आसानी से तोड़ा जा सकता है। दुनिया के कुछेक देशों में इस संबंध को मान्यता प्राप्त है जो असलियत में शादी से पहले का एक 'लिटमस टेस्ट है। इस सामाजिक बदलाव के अब देश के पारंपरिक समाज में भी दर्शन होने लगे हैं। दरअसल यह रिश्ता एक अनौपचारिक समझदारी और जिम्मेदारी पर आधारित है।


परेशानी तब आती है जब इस संबंध में कड़वाहट आनी शुरू हो जाती है। उस समय इस रिश्ते के टूटने में दिक्कत नहीं आती। विवाह के मामले में तलाक की लंबी और जटिल प्रक्रिया वह कारण होती है जो विवाह को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। सिद्धांततः माना जाता है कि ऐसे रिश्ते में बंधे स्त्री-पुरुष अक्सर इतने प्रगतिशील, परिपक्व और समझदार होते हैं कि वह औपचारिक शादी के रिश्ते को न केवल निभा सकते हैं बल्कि अपने सामने आई परिस्थितियों का आपसी समझ-बूझ से सामना भी करते हैं। कुदरती तौर पर ऐसा होता नहीं है, इसलिए लिव इन में रहने वालों को कानूनी सुरक्षा मिलना बेहद जरूरी है।


आजकल जो लिव इन में रहने वालों के खिलाफ मामले सामने आ रहे हैं, उनमें अक्सर पाया जाता है कि लिव इन में रहने वाले जोड़े 10-12 महीने तक तो खुशहाल जिंदगी जीते हैं लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद उनके बीच छोटी-छोटी बातों पर विवाद होने लगता है। कुछ मामले ऐसे भी सामने आये जिनमें पुरुष मित्र कुछ समय साथ रहने के बाद अपनी महिला मित्र से पतियों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। और तो और उन्हें अपनी महिला मित्र के किसी पुरुष मित्र से फोन पर बात करना तक गवारा नहीं होता। बहुतेरे मामलों में पाया गया जिसमें पीड़िता ने आरोपी के साथ कई साल गुजारने के बाद उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया।


कुछ मामलों में पीड़िता कई साल आरोपी के साथ रही। फिर वह उससे अलग रहने लगी और फिर कुछ बरस बीत जाने के बाद उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया। लिव इन के बढ़ते मामलों में अधिकांश हिंसा, मारपीट, जानलेवा हमले से लेकर हत्या तक के सामने आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर वारदातों को पुरुष मित्र ने अंजाम दिया है। कुछ मामले महिला मित्र के हिंसक होने के भी सामने आए हैं। शादी का झांसा देकर लिव इन में रहने के मामले भी कम नहीं हैं जो बाद में विवाद के रूप में सामने आते हैं। इन सभी में शारीरिक हिंसा के मामले सर्वाधिक हैं। यह चिंतनीय है।


छोटे शहरों में भले इसका प्रतिशत कम हो लेकिन महानगरों में बढ़ते तलाक के मामले स्त्री स्वातंर्त्य, सशक्तीकरण, शिक्षा, आर्थिक आजादी और बेहतर करियर की चाह के जीते-जागते सबूत हैं। यही वजह है कि आज बहुत सारे स्त्री-पुरुष यह सोचने लगे हैं कि अब उनको यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि वह विवाह का औपचारिक बंधन स्वीकार करें या नहीं। वैश्विक विकास के दौर में हमें इस नई स्थिति को स्वीकारना ही होगा।


 


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