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शक्ति पीठ जहाँ होती है सारी मनोकामनाएं पूर्ण--पीतांबरा पीठ दतिया


दतिया का पीताम्बरा पीठ: जहां दिन में ३ बार रूप बदलती हैं देवी


हमारे देश में ऐसे कई सारे धाम और मंदिर इत्यादि प्रसिद्ध हैं। लोगों के बीच इन मंदिर की इतनी मान्यता होने का कारण है उन धामों और मंदिरों का इच्छापूर्ति होना। लोगों में ऐसा अटल विश्वास है कि उस धाम या मंदिर के दर्शन मात्र से ही उनकी बड़ी से बड़ी इच्छाएं पूरी हो जाएँगी। 


ऐसा ही एक सुप्रसिद्ध पीठ है दतिया में स्थित पीताम्बरा देवी का पीठ – जहां का एक और आकर्षण है कि पीताम्बरा देवी एक दिन में तीन बार रूप बदलती है I


मंदिर में मां पीतांबरा के साथ ही खंडेश्वर महादेव और धूमावती के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है. मंदिर के दायीं ओर विराजते हैं खंडेश्वर महादेव, जिनकी तांत्रिक रूप में पूजा होती है. महादेव के दरबार से बाहर निकलते ही दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती के दर्शन होते हैं I सबसे अनोखी बात ये है कि भक्तों को मां धूमावती के दर्शन का सौभाग्य केवल आरती के समय ही प्राप्त होता है क्योंकि बाकी समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं I

मां पीतांबरा के मंदिर से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती. राजा हो या रंक, मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं I


कहते हैं विधि विधान से अगर अनुष्ठठान कर लिया जाए तो मां जल्द ही पूरी कर देती हैं भक्तों की मनोकामना I मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है और इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं I राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं. माँ पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में माँ की पूजा का विशेष महत्व होता है I


पीताम्बरा पीठ से जुड़ी कई सारी अलग अलग मान्यतायें लोगों में सुप्रसिद्ध हैं। यदि लोगों की मानें तो इसके विषय में ऐसी भी मान्यता है कि यहां कराये गए हवन से लोगों को अपने मुकदमों में विजय मिलकर ही रहती है। इस पीठ की प्रतिष्ठा इतनी अधिक है कि ऐसा आज तक किसी ने देखा ही नहीं कि  यहां कराया गया यज्ञ किसी भी हालत में निष्फल गया हो।माँ पीताम्बरा, बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक 51 कुंडीय महायज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था, उसी समय 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है, और 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धमें भी यहाँ गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ करायें गये थे I


माना जाता है कि मां बगुलामुखी ही पीतांबरा देवी हैं इसलिए उन्हें पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं. लेकिन मां को प्रसन्न करना इतना आसान भी नहीं है I इसके लिए करना होता है विशेष अनुष्ठान, जिसमें भक्त को पीले कपड़े पहनने होते हैं, मां को पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं और फिर मांगी जाती है मुराद I


पीताम्बर पीठ पर राजनेताओं का तांता


देवी पीताम्बरा शत्रुओं का नाश करने वाली देवी हैं। राजसत्ता की चाह रखने वाले लोगों की भीड़ यहां पर सदैव ही देखी जा सकती है। अपने कष्टों का नाश करने के लिए भक्त यहां पर गुप्त रूप से पूजा अर्चना और यज्ञ करवाते हैं। ऐसा आज तक कभी हुआ ही नहीं कि किसी भी भक्त की प्रार्थना निष्फल गई हो। देवी पीताम्बरा निश्चित रूप से ही सबकी मुराद पूरी करती हैं।


उनके पहले भी वहाँ पर राजनेताओं और अभिनेताओं का तांता रहा है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस के नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, अभिनेता संजय दत्त सहित कई दिग्गज नेताओं और अभिनेताओं ने देवी का दर्शन कर अपनी मनकोमनयें पूर्ण करवाई हैं।


पीताम्बरा पीठ की स्थापना


पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत, जिन्हें लोग 'स्वामीजी महाराज' कहकर पुकारते थे, ने 1935 में की थी। कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था। श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था। कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आये थे, या उनका नाम क्या था; न ही उन्होंने इस बात का खुलासा किसी से किया। उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जोकि देश भर में एकमात्र है।धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं। इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में परशुराम, हनुमान, कालभैरव और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर फैले हुए हैं।वर्तमान में एक ट्रस्ट द्वारा पीठ का रखरखाव किया जाता है। एक संस्कृत पुस्तकालय है जो श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था, और आश्रम द्वारा अनुरक्षित किया जाता है।


 

 

 


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